Short story Hindi kahani for children
कबूतर और चीटी की कहानी
Today's deal
कुछ देर बाद वह कबूतर खाने के लिए नीचे की ओर आ रहा था, कि कभी चीटी ने सोचा कि मुझे उसकी मदद करनी चाहिए।
फिर उस चीज में जाकर छुपे हुए शिकारी के पैर को ज़ोर से काटा जिससे शिकारी की चीख निकल गई। शिकारी की उस चीज को सुनकर कबूतर चौकन्ना हो गया और इस जाल में फंसने से बच गया।
इस तरह से चींटी ने उस कबूतर की जान बचाई
जो जैसा करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। कहानी में पहले चींटी मुसीबत में था तो कबूतर ने उसकी जान बचाई उसी तरह से चींटी ने भी कबूतर की जान बचाई। इसीलिए हमें भी दूसरों की मदद करनी चाहिए और किसी भी मुसीबत में पड़े हुए इंसान को सहायता देकर उसे मुसीबत से बाहर निकालना चाहिए।
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लोमड़ी और मुर्गा की कहानी Story of Fox and Rooster in Hindi
एक छोटे से गांव में एक मुर्गा रहता था। मुर्गा बहुत ही समझदार और चलाक था। एक दिन गांव में एक लोमड़ी आया। लोमड़ी ने देखा की एक मुर्गा पेड़ की टहनी पर बैठा हुआ था। मुर्गे को देखकर लोमड़ी ने विचार किया कि वह मुर्गे को खा जाएगा लेकिन उसके लिए उसे मुर्गे को नीचे बुलाना पड़ेगा।
अब लोमड़ी ने विचार किया कि वह मुर्गे को बेवकूफ बनाएगा और उसे नीचे लेकर आएगा यह सोचकर उसने मुर्गे से कहा, “तुम वहां ऊपर क्या कर रहे हो नीचे आओ नीचे आकर हम दोनों बैठ कर एक साथ बात कर सकते हैं।” ऐसा कह कर लोमड़ी मुर्गे को बेवकूफ बनाना चाहता था।
मुर्गे ने कहा, “नहीं मैं नीचे नहीं आ सकता क्योंकि मैं खूंखार जानवरों से दूर रहता हूं। इसलिए मैं वहां तुम्हारे पास नीचे नहीं आ सकता। मुझे इस बात का डर है कि तुम मुझे दबोच कर खा जाओगे।”
“अरे! तुम्हें नहीं पता,” लोमड़ी ने कहा, “आज जंगल में सभी जानवरों ने फैसला किया है कि वह एक दूसरे जानवरों के साथ मिलकर रहेंगे और एक दूसरे का शिकार नहीं करेंगे। इसलिए अब तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं है। मुझसे भी डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। नीचे आ जाओ हम बैठ कर बात कर सकते हैं।”
मुर्गा लोमड़ी की बातों को सुन रहा था और वह जानता था कि लोमड़ी उसे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा है। तो इसी वजह से मुर्गे ने में अपना दिमाग लगाया और उसने लोमड़ी से कहा, “अरे वाह यह तो अच्छी बात है! अगर ऐसा ही है तो हम सब मिलकर एक साथ रह सकते हैं। ऐसा कहने के बाद मुर्गा अपनी गर्दन को ऊपर करके दूर की तरफ देखने लगा।”
मुर्गी को ऐसा करता है देख लोमड़ी सोचने लगा कि आखिर मुर्गा क्या रहा है? इस वजह से उसने मुर्गे से पूछा कि आखिर तुम वहां क्या देख रहे हो? क्या है वहाँ?
“कुछ नहीं बस मुझे देख कर के ऐसा लग रहा है कि कुछ जंगली कुत्ते झुंड में इसी और आ रहे हैं। इसी वजह से मैं अपना गर्दन ऊपर करके उन्हें देख रहा हूं। ” मुर्गे ने लोमड़ी से कहा।
यह सुनकर लोमड़ी घबरा गया और वह वहां से निकलने की कोशिश करने लगा। जैसे ही वह वहां से जाने लगी तो मुर्गे ने पूछा, “तुम यहां से क्यों जा रही हो? रुको हम बैठकर बात करने वाले थे और जंगली कुत्ते जब आ जाएंगे तो हम उनके साथ बैठ कर बात कर सकेंगे। “
“नहीं! नहीं! मैं यहाँ नहीं रुक सकता अगर मैं यहां रुका और कुत्ते आ गए तो वह मुझे खा जाएंगे इसीलिए मुझे यहां से जाना पड़ेगा।” लोमड़ी ने कहा।
“अच्छा लेकिन सुबह तो फैसला हुआ था कि जंगल के सारे लोग एक दूसरे के साथ मिलकर रहेंगे और किसी को नहीं मारेंगे तो फिर तुम डर क्यों रहे हो?” मुर्गे ने लोमड़ी से पूछा।
लोमड़ी ने मुर्गे से कहा, “दरअसल बात यह है कि यह खबर अभी तक जंगली कुत्तों तक नहीं पहुंची है। इसीलिए मुझे यहां से भाग कर जाना पड़ेगा। “
यह कहकर लोमड़ी तुरंत ही वहां से भाग गया और इस तरह से मुर्गे ने अपनी जान बचाई और अपनी रक्षा की।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें दूसरों की बात को तुरंत नहीं मानना चाहिए हमें उस पर विचार जरूर करना चाहिए कि वह हमारे लिए सही है या नहीं। इस कहानी से हमें यह भी शिक्षा मिलते हैं कि हमें अपनी रक्षा के लिए हमेशा विचार करना चाहिए।

खरगोश और कछुए
की कहानी
एक नदी के किनारें घना जंगल था उस जंगल में अनेक जंगली जानवर रहते थे। वहाँ एक खरगोश और एक कछुआ भी रहता था। खरोश सबसे तेज़ दौड़ता था वही दूसरी तरफ कछुआ बहुत धीरे-धीरे चलता था। खरगोश हमेशा कछुए का मज़ाक उडाता क्योकि वह हमेशा धीरे चलता था। वह जब कभी भी कछुए को देखता उसका मज़ाक उडाता, “वो देखो फिर आ गया धीमा कछुआ। यहाँ आने के लिए इसे शायद 2 दिन लगा होगा। “
खरगोश को खुदपर बहुत ही ज़्यादा घमंड हो चूका था। अब वह लोगों को दिखने के लिए और कछुए को निचा साबित करने के लिए कछुए से जाकर कहा, “धीमी रफ़्तार वाले कछुए मई तुम्हे खुदको साबित करने का मौका देता हूँ। तुम और मै आपस में एक दौड़ प्रतियोगिता करेंगे। हम दोनों में जो जीतेगा वहीं हममें से ज़्यादा तेज़ होगा।”
कछुआ बेचारा क्या करता उसने उस प्रतियोगिता के लिए हाँ कर दी। अब अगले दिन दोनों के बीच प्रतियागिता होने वाली थी। जैसे ही अगले दिन की शुरआत सूरज की किरणों के साथ हुई जंगल के सारें जानवर इक्खट्टा होने लगें। जैसे ही खरगोश आया सुब उसकी तारीफ करने लगें। सबका कहना था की खरगोश ही जीतेगा। फिर कुछ देर बाद कछुआ भी वहाँ पंहुचा। कछुए को देरी से आता देख सब उसे चिढ़ाने लगें, “देखो इसे आज के दिन भी देरी से आया है। ये कभी नहीं जीत सकता।” कछुए ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
दोनों दौड़ के लिए एक साथ खड़े हुए और दोनों के बीच प्रतियोगिता शुरू हुई। प्रतियोगिता शुरू होते ही खरगोश पूरी रफ़्तार के साथ दौड़ने लगा। लेकिन, कछुआ अपनी धीमी चाल से आगे बढ़ता रहा। कछुआ बहुत तेज़ था उसने कम समय में लम्बी दुरी तय कर ली थी। कछुआ जब थोड़ा थक गया टब वह थोड़ी देर रुक गया। उसने पीछे मूडकर देखा तो पीछे कोई भी नहीं था।
उस वक़्त कछुए ने सोचा, “अरे वाह! मै तो बहुत आगे हूँ। मैं यह प्रतियोगिता बड़ी आसानी से जीत जाऊंगा। मैं थोड़ी देर इस पेड़ के नीचे आराम कर लेता हूँ।” अब खरगोश पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। आराम करते-करते उसे नींद आ गई और वह सो गया।
दूसरी तरफ कछुआ आराम से चलता हुआ अपने मंज़िल की तरफ बढ़ रहा था। रास्ते में उसने खरगोश को सोता हुआ देखा और वह आगे बढ़ चला। अचानक खरगोश की नींद खुला और वह तुरंत भागा। जब वह अंतिम स्थान पर पंहुचा तो उसने देखा की कछुआ पहले से पहुंच चूका था और खरगोश वह प्रतियोगिता हर चूका था।
खरगोश की हार जाने से उसका सारा घमंड ख़तम हो गया और उसने कछुए से माफ़ी मांगी।
कहानी से हमें सिख मिली
घमंड करना और दूसरे का मज़ाक उड़ाना अच्छी बात नहीं होती।
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